एक अख़बार का पहला पन्ना
सबसे पहले अख़बार का नाम . उसकेबाद एक अधनंगी लडकी (हिरोईन) कि तस्वीर जिसके तन पर कपडो को तलाशना पड़ता हो . सम्पादक का मानना है कि मास का लोथडा देख कर लोंग अख़बार खरीदते है. सम्पादक इसे महिलावो कि आजादी का नाम भी देता है . नीचे किसी महात्मा का बोल है कर्म के फ्ल कि चिंता मत कर . इसीसे पेररित हो सायद सम्पादक लड़कियों कि लगभग नगी तस्वीर छाप उसे आधुनिकता का नाम डे रहा है .नीचे कि खबर है सरगना बरी (पाच ह्त्यावो का मामले मे अदालत का फैसला ) खबर कोई उत्तेजना नही फैलाती हमारे यहा सरगनावो को अक्सर बरी किया जाता है इसमें कुछ नया नही . आगे कि खबर है कि इशरत मुठभेड़ फर्जी (मोदी सरकार ने कि थी चार निर्दोसो कि हत्या ) खबर फिर फेल! कोई उत्तेजना नही! चार कि संख्या तो बहुत कम है! मोदी ने तो गोधरा मे हजारो कि हत्या कि थी! इसमें भी कुछ नया नही! अगली खबर कोर्ट ने बहनजी को मूर्तियों के मामले मे लगाई फटकर ( दलितों के साथ अक्सर ऐसा होता है उनका विकास किसी को नही भाता तभी तो करोडो रूपये खर्च कर दलितों को स्वाभिमानी बनाने कि योजना को लोंग नकार रहे है . दलितों का क्या है मूर्ति देख के पेट भर जायेगा ) यह खबर भी फेल कोई उत्तेजना नही अगली खबर मंत्रियों ने choda पाच सितारा होटल ( घर मिलने कि वजह से ११० दिन से थे पाच सीता रा होटल मे ) अरे भाई मंत्री किसी ढाबे मे रहेगा क्या ? भले ही भूखे नंगे देश का करोडो रुपया बर्बाद हो . यह खबर भी फेल कोई उत्तेजना नही. जब कोई उत्तेजना ही नही क्या हम अपने मकसद के ओर बढ़ रहे है? क्या यही है पत्रकारिता ? सायद अब उत्तेजित होना बुराई बन गयी है . लोंग सब जान रहे है मतलब सरगना ही हत्यारा है ,नंगी लडकी बजार कि माग है ,मोदी ह्त्त्यारा है , बहनजी धूर्त है और भी बहुत कुछ जानते है जो ठीक नही है . फिर भी इतना सन्नाटा ये हम किस युग मे आगये ! या किस तरफ बढ़ रहे है ! इस अख़बार मे इतना कुछ है कि कर्न्ति हो जाये पर चारो तरफ सन्नाटा ही सन्नाटा
 
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